लाँकडाउन का पहला दिन
सर्वमंगला मिश्रा
25 मार्च की शाम, मैं छत पर गई मेरे पिताजी द्वारा लगाए पेड़ पौधों को सींचित
करने हेतु क्योंकि, लाकडाउन में पेड़ पौधों का तो कोई दोष नहीं। उन्हें जीवित
रखेंगें तो ही हम जीवित रह पाएंगें। मेरे पिताजी को बागवानी को बहुत शौक है।
उन्होंने छत पर काफी हरियाली बना रखी है। वो कहीं भी जाने का प्लान करते हैं तो
उसके पहले उन्हें उन पेड़ पौधों की चिंता सताने लगती है। कई रकम के फूल जो सुंदरता
के साथ साथ औषधीय तौर पर भी उपयोग में लाए जाते हैं। मुझे सबके नाम नहीं पता इसलिए
सबके विषय में बता पाना मेरे लिए मुश्किल है। फिर भी जैसे ऐलोविरा, जूही, मंदार,
तुलसी तो कई प्रकार की है- श्यामा और भी बहुत सारी। खैर मैं उपर पानी डालने गई तो
आज का दृश्य बड़ा मनमोहक लग रहा था। मेरा घर मेन रोड़ पर होने के कारण हमेशा गाड़ियों
का शोरगुल सुनाई देता रहता है। आज अद्भुत शांति थी। कोई चहल पहल नहीं, चारों ओर
सन्नाटा केवल सन्नाटा। पेड़ पौधे भी आज जैसे प्रदूषण मुक्त सांस ले रहे थे। आज किसी
को कहीं जाने की कोई जल्दी या हड़बड़ाहट नहीं थी। ना इंसान की आवाज ना ही गाड़ियों
के हार्न आवाज- सब बंद। केवल सूर्य भगवान अपनी रौशनी से चारों ओर वातावरण को प्रफुल्लित
कर रहे थे। केवल चिड़ियों का चहचहाना आज सुनाई दे रहा था। हर छत सुनसान विरान थी,
सड़क पर भूले कोई दिख रहा था। निश्चित तौर पर लोग घरों में बैठकर भी आफिस का काम
कर रहे थे। क्योंकि आज से पहले बहुत हद तक वर्क फ्राँम होम को निठल्ला ही समझा
जाता था। पर डिजिटल वर्ल्ड आज सबकुछ बदल दे रहा है। आईटी क्षेत्र में काम करने
वाले कई मित्र हैं मेरे जिनकी वजह से मुझे पता है कि उन्हें वैसे भी सप्ताह में एक
या दो दिन वर्क फ्राँम होम की सुविधा कंपनी देती है। पर अब चार्टेड अकाउंटेट से
लेकर वकील, जज भी वर्क फ्राँम होम कर रहे हैं।
इस आपातकालीन
परिस्थिति में भी डाक्टर, नर्स, पुलिस, मीडिया और आवश्यक सामग्री वितरण करने वाले
लोग जैसे दूध, अखबार सफाई कर्मचारी ये सभी लोग जान हथेली पर लेकर घूम रहे हैं। ऐसी
परिस्थिति में जो लाकडाउन का पालन कर रहे हैं वो सुरक्षित हो गए पर हमारी आपकी
सहायता में तत्पर लोगों का क्या ? हम सुरक्षित हो गए
देश से कोरोना निकल गया और जब हम बेफिक्र होकर बाहर निकलेंगें और इनमें से कोई
संक्रमित व्यक्ति रह गया उसे पता भी नहीं चला और संक्रमण फिर फैलने लगा तो क्या
होगा? मानती हूं आवश्यक वस्तुओं के बिना जीवन चलना
मुश्किल है पर सैनेटाइजर के अलावा ऐसी कोई दवा या एंटीबायटिक जिसका सेवन हर कोई
करे जिससे इससे पूर्णतया देश मुक्त हो। मास्क लोग देखादेखी पहन तो रहे हैं। पर
ऐतियात क्या बरतना है शायद इससे वो पूर्णतया अनभिज्ञ हैं।
देश की वित्तिय हालत
देखी जाय तो अनुमानत: प्रत्येक सेक्टर को हानि पहुंचने वाली है। होटल,
टूरिज्म, एवीएशन, इवेंट मैनेजमेंट। इसके विपरीत अस्पताल, फार्मा, लैबोर्टरीज़, मीडिया
इन सेक्टर्स को फायदा पहुंचने की उम्मीद है। पर, उस तबके का क्या -जो लोग कहीं भी
कर्मचारी नहीं है जैसे तैसे अपना गुजारा करते हैं। रिक्शाचालक, डेलीबेसिस पर काम
करने वाले मजदूर, जिनकी आमदनी इतनी नहीं होती कि घर बैठकर वो 21 दिनों तक दो वक्त
की रोटी खा सकें। ऐसे लोगों के बारे में भी सरकार को ध्यान देना चाहिए। देश का हर
नागरिक की भूख यदि सुरक्षित हो जाए तो साल में दो बार लाँकडाउन का स्वागत शायद हर
नागरिक कर लेगा।