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Monday 25 November 2019


दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री – मनोज तिवारी
सर्वमंगला मिश्रा

कहते हैं भारत का दिल दिल्ली है पर दिल्ली के दिल में क्या छिपा रहता है ये शायद ही कोई भांप पाता है। दिल्ली सदियों से शासकों का सपना रही है। महाभारत का काल हो या मुगल सल्तनत का या आज का शासन खुद नजरें घुमाकर देख लीजिए दिल्ली ही शासकों को ताज पहनाती आई है। इसी तख्तो ताज के लिए सिंहासन लाल हुए तो इक्कसवीं सदी में पोस्टर वार से राजनीति की आंखें अब डिजिटल वार पर टिक गई हैं। अब भी शासकों का दिल दिल्ली की आबो हवा में बसता है। इसी तरह 2014 का लोकसभा चुनाव में एक सशक्त सरकार देने वाले और उसकी पुनरावृत्ति भी करने वाले प्रधानमंत्री मोदी के हाथ से जब दिल्ली की सल्तनत फिसली कर केजरीवाल के हाथों गई थी तो मन में कुछ कसक रह गई थी। मोदी जी ने अपना कर्तव्य तो पूरा किया था केजरीवाल जी को बधाई देकर पर दिल्ली के शासन का न होना एक कसक जरुर बनी रही। शायद अब मोदी जी पूरे देश में भाजपा का परचम फहराने के बाद दिल्ली के फिसलने का रिस्क नहीं लेना चाहते। वैसे भी इंसान से गलती एक बार होती है। यदि दुहरा दी जाय तो यही समझा जाता है कि पहली गलती से सीख नहीं ली गई।
वैसे देखा जाये तो दिल्ली में महानुभावों की कमी नहीं है। दिग्गजों की भरमार है। पर मेरे दिमाग में एक नाम कई महीनों से कौंध रहा है। वो नाम है मनोज तिवारी। आज की तारीख में नाम ही काफी है। गायकी और अभिनय के बल पर भोजपुरी सिनेमा के जरिए लोगों के दिलों पर लम्बे समय तक राज करने के बाद मनोज जी का अमूमन हृदय परिवर्तन हुआ और 2009 में आदित्यनाथ योगी के विपरीत खड़े होने का साहस दिखाने वाला ये शक्स और कोई नहीं आज के दिल्ली के भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ही हैं। पर उस समय मुलायम सिंह की लाल टोपी वाली पार्टी से उम्मीदवार बने थे। गायकी का अपना भोला अंदाज रखने वाले और अभिनय में लगातार नम्बर वन के पायदान पर खड़े रहने वाले मनोज तिवारी ने ससुरा बड़ा पैसावाला और दरोगाबाबू आई लभ यू जैसी फिल्में की। इन फिल्मों ने मानो एक नई दिशा का आगाज़ करवा दिया। वहीं दिल्ली में पूरे देश से आए लोग बसते हैं उत्तर, पूर्व, दक्षिण और पश्चिम के अलावा देश विदेश के छात्र छात्राएं, काम करने वाले लोग, वहीं बस जाने वाले लोग। उत्तर प्रदेश और बिहार दिल्ली से बहुत प्रभावित रहता है। गतिविधियां प्राय:  समान सी चलती हैं। हवा का रुख दिल्ली से बहना शुरु होता है और उत्तर प्रदेश और बिहार को घेर लेता है। 
कहने का अभिप्राय यह है कि मनोज तिवारी भोजपुरी सिनेमा के दमदार नायक होने के कारण उत्तर प्रदेश और बिहार के राज्यों पर पूरी पकड़ होने के कारण भाजपा ने उन्हें पहले शामिल किया पार्टी में और फिर मोदी रुख हवा और अपनी माटी से अनंत प्रेम करने वाला भोजपुरी समाज ने जी भर के वोट दिया और दिल्ली में मनोज तिवारी जी की जय जयकार हो गई 2014 में वो भी आप प्रत्याशी के विरुद्ध 1,44,084 वोटों से। वहीं 2019 के चुनाव में कांग्रेस की भूतपूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 3.66 लाख मतों से पराजित करने के बाद मनोज तिवारी का कद और भी ऊंचा हो गया। तो मोदी सरकार भी क्यों ना उन पर विश्वास करे जो दो बार दिल्ली की जनता के दिल में आसानी से बैठ गया। इन बातों को ध्यान में रखकर ये विश्वास किया जा सकता है और मोदी शाह की रणनीति यही होगी कि जीत गए तो दिल्ली का सिंहासन पर भाजपा के बीच मनोज तिवारी ही सुशोभित होंगे।

अब बात करते हैं दिल्ली के उत्तर पूर्व इलाके के वोटधारकों के बारे में। उन्हें मनोज तिवारी तो जीतने के बाद भी शायद कुछ न दे पाए हों क्योंकि केजरीवाल की सरकार बन गई तो ठिकरा फोड़ने के लिए एक सिर और कंधा तो अभी है। वहीं मनोज तिवारी के पास उत्तर प्रदेश और बिहार का दिल है जो दिल्ली में रहकर एक बार वो भुना चुके हैं जिससे पार्टी को भी फायदा पहुंचा और अब 2019 का साल जाने को है एक माह शेष है जिसमें मनोज तिवारी ने हौले हौले अपनी चाल और तेज कर ली है। अब अपने भोजपुरिया समाज के दिल को जीतना उनके लिए शायद ज्यादा कठिन नहीं होगा। अब भाजपा सरकार के दमदार काम लोगों के सामने हैं जैसे – तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं को आजादी, कश्मीर को धारा 370 से आजादी, उरी अटैक, पाकिस्तान को विश्व के समक्ष नतमस्तक कर देना और करवा देना जैसी और भी कई उपलब्धियां हैं जिन्हें दिल्लीवासी जरुरी समझते हैं। उन्हें लगता है कि गुजरात का प्रधानमंत्री होकर जब हर राज्य और हर वर्ग के लिए कुछ नहीं बहुत कुछ सोच रहा है तो ये तो अपनी माटी से जुड़े हैं अपने हैं अपना भी भला ही होगा। अपने बड़े बड़े घर छोड़कर फुटपाथ और झोपड़ पट्टियों में रहने को मजबूर ये तबका अपनी दरियादिली अपने चहेते नायक और गायक के प्रति दिखा भी दे तो क्या मनोज तिवारी भी उसका प्रतिउत्तर दे पाएंगे, महसूस कर पाएंगें उनकी तकलीफों को उनकी मांगों को असलीयत में।

मनोज तिवारी पर राजनीति हावी है। जनता का मन उन्हें मोहना आता है। इसीलिए केजरीवाल को प्रदूषण की समस्या हो या पेय जल टेस्ट में दिल्ली का 20 वें पायदान के पार खड़ा होना- हर मुद्दे पर सावधान खड़े हैं सतर्क होकर विरोध करने का एक भी मौका चूके बिना दिल्ली की कुर्सी हासिल करने की होड़ में शायद वो अकेले राजकुमार हैं।

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