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Thursday 29 March 2018


विजय रथ किस ओर...

सर्वमंगला मिश्रा

भाजपा का विजय रथ पूरे भारत में अपना परचम लहरा रहा है। मई 2014 से लेकर 2018 के मध्य तक भारत की दशा और दिशा ही भाजपा ने बदल कर रख दी है। कांग्रेस की पनाह में सदैव से पलने वाला नार्थ ईष्ट, अब पूर्णतया भाजपा के कब्जे में आ गया है। पहली बार सेंध असम में हुए विधानसभा चुनाव से भाजपा ने लगायी थी। उसके बाद तो अब त्रिपुरा भी वाम दलों से छीन गया है। 25 वर्षों का निरंकुश शासन टूटकर बिखर गया। इसी तरह बंगाल में भी 34 वर्षों के पुराना लाल महल को ममता दीदी ने खंडहर में तब्दील कर दिया था। अब केरल में ही वामपंथी सरकार बची है। हाल ही में हुए चुनावों ने यह दर्शा दिया है कि नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय भी भाजपा के प्रभाव से अछूता नहीं रह पाया। भाजपा का जादू अबीर गुलाल की तरह हर राज्य, हर गली और हर इंसान के दिमागी कोने तक पहुंच गया है।
वाम दल के एक नेता ने कहा कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है नार्थ ईष्ट सदैव से केंद्र की ओर देखती रही है। पर यहां आपको याद दिलाना आवश्यक है कि अटल बिहारी वाजपायी जी के कार्यकाल में भी नार्थ ईष्ट के राज्य कांग्रेस की मुट्ठी में ही बंद रहे। यह पहली बार हुआ है जब किसी प्रधानमंत्री ने नार्थ ईष्ट के राज्यों पर भी अर्जुन वाली तरकश चढ़ायी, और इस बात को उद्घोषित कर दिया कि छोटा हो या बड़ा, हर राज्य महत्तवपूर्ण है और भारत का अभिन्न अंग है।हर राज्य का विकास होगा जैसे गुजरात का 15 सालों में नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने किया है। हर राज्य अपने विकास की गाथा भाजपा के साथ लिखेगा। कोई भी राज्य अब पिछड़ा न कहलाये भाजपा सरकार इसकी पूरी कोशिश कर रही है।
पिछले कई दशकों से नार्थ ईष्ट के राज्य आतंकवाद की चपेट में जी रहे हैं। यहां नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय की जनता ने भाजपा को वोट कर चुनावी रणनीति की चाल ही बदल डाली। कांग्रेस की पुरानी सुस्त चाल से त्रस्त जनता ने उंगली से बिगुल बजा डाला। क्योंकि 2019 मे होने वाले लोकसभा चुनाव को कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने के प्रस्ताव को भी वामपंथी सरकार ने खारिज कर अपनी रुढिवादी रवैये को जगजाहिर कर दिया है। हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने का हश्र क्या होता है ? सपा ने उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव (2017) में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया तो सपा की रही सही शाख भी चरमर्रा गयी थी।  
वामपंथी सरकार भाजपा की जीत से अब इतनी घबरा गयी है कि 12 मार्च को हुए चुनाव में चारिलम सीट से अपने उम्मीदवार भी नहीं उतारी। मन से आतंकित वामपंथी दल हार जाने की सुनिश्चितता से बचने के अल्फाज़ बदल डाले- कहा कि भाजपा द्वारा चनावी हिंसा का वो वायकाट करने के लिए उम्मीदवार नहीं उतारेंगें। केरल में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जाहिर सी बात है त्रिपुरा में हुए इस आसमान को छूने वाली जीत का असर तो नजर आएगा ही। असफल हो रही वामपंथी सरकार के आगे अब करो या मरो की स्थिति पैदा हो गयी है। जिस विचारधारा को लेकर आजतक वामपंथी दल आगे बढ़ा अब उसमें उर्जा शेष मात्र है। रक्तसंचार की कमी स्पष्ट रुप से दिखती है। कथनी और करनी में जमीन आसमान का फर्क नजर आता है। वाम दल जहां सिर्फ गरीबों की दुहाई देते हैं वहीं उनके पास उन्हीं गरीब लोगों के लिए कोई ठोस योजना भी दिखाई नहीं देती। गरीबों की अवस्था में कोई खास सुधार नहीं आया है। आज वामपंथी दल में कुछ गिनेचुने नेताओं के अलावा कोई विशेष युवा नेता उभरकर नहीं आया जिसपर युवावर्ग भरोसा कर सके। ऐसी स्थिति में वामपंथी दल के पास ना ही नया नेता है और ना ही नयी सोच...। इसी परिस्थिति का लाभ भाजपा ने झटक लिया और शतरंज की बिसात बिछाकर जनता को नयी राह भी सुझा दी।
आऱएसएस से भाजपा कार्यकर्ता बिप्लब देव ने सोचा भी नहीं होगा कि उनका सपने में देखा सपना हककीत में तब्दील हो जायेगा। 48 वर्षीय मुख्यमंत्री ने अब जब राज्य की कमान संभाल ली है तो जाहिर सी बात है कि चुनाव में जमीनी हकीकत को समझने और समझाने में बिप्लब कुमार देब सझम रहे। त्रिपुरा की 60 विधानसभा सीटों में से 35 पर भाजपा ने अधिकार जमा लिया तो सहयोगी क्षेत्रीय पार्टी आईपीएफटी ने 8 सीटें जीतकर भाजपा के साथ सत्ता का नया अध्याय लिखने चली है।
माणिक दा की सरकार को लोग सादगी वाली सरकार के तौर पर देखते थे। पर अब जामाना बदल गया है। लेग अपनी बात छायावादी तरीके से नहीं डायरेक्ट कहते हैं। यह 21 वीं सदी है जहां जो युवाओं और नयी टेक्नोलाजी को अपनाये बिना चलना चाहेगा जनता उसके साथ कदम मिलाकर नहीं चलना चाहेगी। सरकार राज्य की हो या केंद्र की जनता को उन्नति के पथ पर नहीं ले जा सकती तो कैसी सरकार है ये....? ऐसा ही कहेंगें लोग...और आपकी जगह उन्नति के पथ पर चलने वाले के साथ कदम मिलाकर चलना शुरु कर देंगें। माना कि संविधान बन गया है पर संसोधन तो होते रहना चाहिए।
गौर करने वाली बात है एक जमाना था- कांग्रेस का। फिर आया भाजपा का जमाना और गया पर 2014 से जो एक जीत की श्रृखंला शुरु हुई है वो तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही। स्वर्णिम अक्षरों में यह विजय गाथा भाजपा लिखने को तैयार है बशर्ते केरल, बंगाल और ओड़िसा में अपने विजय रथ को भाजपा बेरोक टोक पहुंचा दे। वहीं नागालैंड में भाजपा 29 में से 21 सीटों पर अपना अधिकार जमा लिया।
आज भाजपा की सरकार 21 राज्यों में अपने झंड़े गाड़ चुकी है। जिनमें से 15 राज्यों में भाजपा के अपने मुख्यमंत्री हैं तो 6 राज्यों में सहयोगी पार्ची के साथ। कभी केंद्र में अपनी शान पर गुरुर करने वाली कांग्रेस के पास आज मात्र 4 राज्य हैं और अन्य राजनैतिक दलों के पास 5 राज्य और 1 केंद्र शासित राज्य है जिनमें से टीएमसी के पास बंगाल, बीजू जनता दल के पास ओड़िसा, तेलंगाना राष्ट्र समिति के पास तंलंगाना, मार्कसवादी कम्यूनिष्ट पार्टी के पास केरल, एआईएडीएमके के पास तमिलनाड़ु और आम आदमी पार्टी के पास दिल्ली।


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