शासक
और शासन
सर्वमंगला
मिश्रा
9717827056
कुछ
चीजों का जिक्र होते ही मस्तिष्क
कौंधने लगता है। एक छवि जो
चैतन्यअवस्था अथवा अर्धसुसुप्तावस्था
में भी एक समान अपनी प्रक्रिया
देता है। जिसतरह भारत पाक का
क्रिकेट मैच,
कश्मीर
मसला या आरक्षण का मुद्दा।
देश जब एक छत्र शासन के तहत
था, जब
अंग्रेजों के अधीन था और जब
स्वतंत्र हो गया पर,
प्रत्येक
शासनकाल के तहत वैमनस्यता
शासन प्रणाली,
शासक
और जनता के बीच एक अविश्वसनीय
विवाद के रुप में जन्म लेता
आया है और लेता रहेगा। यह
प्रकृति का नियम है।शासक
आदिकाल से अपने प्रभुत्व को
स्थापित करने वाला होता है।
समय का कालचक्र जब अपनी परिधि
बदलता है तो आकाश से लेकर पाताल
तक परिस्थतियां पूर्णरुपेण
बदल जाती हैं। इसी तरह समय ने
करवट ली और हिन्दु शासकों के
स्थान पर मुस्लिम शासनकाल
आया। समय चक्र फिर घूमा और
दासत्व का जीवन भोगने को मजबूर
हो गये भारतवासी। काल परिधि
फिर बदली और देश स्वतंत्र हो
गया। इसी तरह सरदार पटेल के
रहते हुए भी जवाहरलाल देश के
पहले प्रधानमंत्री बने। उसके
बाद धीरे धीरे परंपरावाद में
शासनकाल परिवर्तित होने लगा
और इंदिरा गांधी के मरणोपरांत
राजीव गांधी को देश के सबसे
प्रमुख पद पर आसीन कर दिया।
समय की सीमा समाप्त हो गयी और
सोनिया गांधी ने सीताराम केसरी
को रिप्लेस किया। हवा यूं तो
रुकती नहीं पर लगता है ठहर सी
गयी है। चुनौती हर किसी के
सामने खड़ी होती है। चुनौती
आज राहुल गांधी है-देश
के लिए,
देश
की सबसे पुरानी पार्टी के लिए।
आज देश का हर शक्स यह जानने को
कहीं न कहीं उत्सुक है कि राहुल
बाबा कहां गायब है। क्या यह
समझा जाय कि राहुल अब बोझिल
राजनीति से बोर हो चुके हैं
और अपने जीवन को किसी दूसरी
राह की तरफ मोड़ने को उत्सुक
हैं। देश आज यही विचार कर रहा
है कि अगर राहुल बाबा को दायित्व
दिया होता तो क्या होता ?
चुनौतियों
से क्या मुंह मोड़ लेते राहुल
गांधी। जिस परिवार ने तानाशाही
से लेकर हर चुनौती को परास्त
किया। उसी घर का चिराग आज कमजोर
साबित हो रहा है।
चुनौती
मोदी ने दी-राहुल
को।
मोदी
ने अनगिनत बीहड़ पहाड़ को
काटकर अपना रास्ता स्वंय
बनाया। पथिक जंगल-पहाड़
जैसे दुर्गम रास्तों से होता
हुआ मंजिल तक जब पहुंचता है
तो विश्वविजेता कहलाता है।
मोदी आज विश्वविजेता के रुप
में देखे जा रहे हैं। इस
विश्वविजेता के सामने देश की
तमाम चुनौतियां हैं। गरीबी,
भूखमरी,
बेरोजगारी,
धांधली,
घोटाला,
भ्रष्टाचार
और आतंकवाद। प्रधानमंत्री
ने देश की 100
करोड़
जनता से यह वायदा किया है कि
देश को बदलकर रख दूंगा आप मुझे
एक मौका तो दो। जनता जनार्दन
कही जाती है। जनता ने अपने
आर्तनाद को सुना और बाहर से
मोदी के शंखनाद को। अब साल
पूरा होने जा रहा है मोदी सरकार
को। मोदी जी ने सबसे छोटे देश
भूटान से लेकर सबसे बड़े
लोकतांत्रिक देश तक की यात्रा
कर ली और आमंत्रित कर मेहमाननवाज़ी
भी कर डाली। अब तक एक दर्जन से
भी ज्यादा विदेश यात्रा कर
चुके मोदी जी ने देश के कितने
महत्वपूर्ण मसले सुलझाये ?
स्वयं
प्रधानमंत्री बनने से पहले
कर्नाटक में अपना दम खम दिखाने
से शुरु कर अपने प्रधानमंत्री
बनने के बाद भी दिल्ली की कुर्सी
के लिए सतत प्रयत्नशील रहे
मोदी। यानी चुनाव-चुनाव
और सिर्फ चुनावों में व्यस्त
रहे मोदी जी। अभी कनाड़,
जर्मनी
जैसे देशों की यात्रा पर 09
अप्रैल
को रवाना हो गये। अगले महीने
फिर चीन के बिजिंग की यात्रा
पर रवाना होंगे।
कश्मीर
के साथ-
साथ
चीन से भी भारत को एक अनजान सी
बेरुखी का एहसास बीच बीच में
होता रहता है। कश्मीर मुद्दा
भारत की आजादी के साथ साथ चल
रहा है। अरुणांचल प्रदेश पर
चल रही सहमी राजनीति कहीं
खुलकर विरोध की चिनगारी से
ज्वालामुखी न बन जाये। मसले
मात्र दो नहीं अनेक हैं पर
मोदी जी की रमनीति क्या है।
क्या सिर्फ विदेश यात्रा करने
से देश सफलता की ऊंचाइयों को
छूने में सक्षम हो सकेगा। आज
मौसम की मार से किसान पूरे देश
का सिसक रहा है। मजबूरी की
इंतेहां जबाव दे दे रही है और
किसान मौत को गले लगा रहा है।
देश का किसान जब मौत की नींद
सो जायेगा तो भविष्य खुशहाल
कैसा जिंदा रह पायेगा। विडियो
कांफ्रेसिंग और रेडियो के
जरिये बात करना एक सुखद एवं
सरल माध्यम है अपनी बात उन
लोगों तक पहुंचाने के लिए
जिनसे संपर्क साधना कठिन है।
पर, मोदी
अपनी प्लानिंग के लिए जाने
जाते हैं। गरीब किसानों,
बेसहारा
बच्चों और महलाओं के लिए कया
स्ट्रैटेजी है सरकार की। योजना
लागू करना तो प्रत्येक शासनकाल
से होता चला आ रहा है। नयापन
और वायदा किस उम्मीद केसागर
में गोते लगा रहा है।
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