मिस्टिरियस मुम्बई में-
सुशांत का अशांत रहस्यसर्वमंगला मिश्रा
मुम्बई महानगरी मायानगरी,
जहां चीजें हवा की परत की तरह बदलती हैं। सुशांत का जीवन भी रिया के कदम रखते ही
बदलने लगा इतना बदल गया कि सुशांत का परिवार अकेला रह गया और सुशांत अकेले ही एक
नए सफर पर निकल गया। गुस्ताख़ी या जलन, प्रतिशोध या फितरत, क्या छुपा है रेत की
गहराइयों में सुशांत का अशांत रहस्य।
हर शहर की अपनी एक
गरिमा होती है, अपना एक व्यक्तित्व होता है, अपना एक ढ़ंग होता है। लोगों को
अपनाना और उनसे मुख मोड़ लेना भी फितरत में आता है। कहते हैं हर शहर हर इंसान की
परीक्षा लेता है अपने ढ़ंग से और जो उसमें खरा उतरता है शहर उसका हो जाता है। 6
महीने या साल भर हर शक्स की परीक्षा होती है कोई पास तो कोई फेल होता है। सुशांत
सिंह राजपूत पास हो गए थे। शहर ने उन्हें अपना भी लिया था पर कुटिल षणयंत्रों से
अंजान सुशांत अपने जीवन में आता ट्विस्ट समझ नहीं पाए और जब तक समझ आया तो बहुत देर
हो चुकी थी।
कहानी में ट्विस्ट
आता है पर सुशांत मर्डर केस में न जाने कितने ट्विस्ट एंड टर्नस अभी और आने बाकी
हैँ। मीडिया के शोर मचाने से केस तो सीबीआई के हाथों पहुंच गया है। पर सवाल उठता
है कि हजारों लोग अपने किस्मत की आजमाइश करने आते हैं कोई सफल तो कोई वापस अपना
रास्ता नापता चला जाता है। तमाम गवाहों की मानेतो रिया की हूकूमत चलती थी सुशांत
पर। इन बातों को कहने वाले उनके द्वारा रखे गए स्टाफ ही कह रहे हैं। खेल पैसों का,
धोखे का, ईर्ष्या का या प्रतिशोध का। रिया पैसों के लिए सुशांत के साथ प्यार का
खेल खेली या धोखा से शहद षणयंत्र रचकर उन्हें मौत के घाट ही उतारने आई थीं। मकसद
पूरा करने का जरिया थीं रिया। इसका पता सीबीआई लगाएगी, जिसके लिए हम सबको
प्रतीक्षा करना होगा।
नेपोटिज्म से लेकर
करियर को ढलान पर दिखाने से लेकर हजार साजिशें रची गईं ऐसा साबित करने के लिए कि
सुशांत की मानसिक हालत खराब थी, वो अवसाद से गुजर रहे थे। खैर, इन बातों को अब
शायद कोई औचित्य नहीं है। हजारों सबूत और गवाह यही बताते हैं कि सुशांत एक जिंदादिल,
जीवन को जीने वाले इंसान था। डायरियों में भविष्य की योजनाएं थीं। पर “वो” अपनों में बेगाना
कौन था ?जिसे सुशांत कांटे की तरह चुभ रहा था। जिसे उसकी
उन्नति सहन नहीं हो रही थी। जिसे सुशांत फूटी आंख नहीं भा रहे थे। क्या बेगानों ने
अपना बन के लूटा या अपनों ने बेगाना बनकर। सवाल जलेबी की तरह टेढ़ा है पर जलेबी भी
किसी सिरे से शुरु होती है और कहीं उसका सिरा खत्म होता है।
इस केस में रिया के
रखे गए स्टाफ में सिद्धार्थ पिठानी एक अहम कड़ी के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि यही
वो दो आंखें हैं जिसने सुशांत को 14 जून की सुबह पंखे से लटका देखा। पीछे नीरज और
दीपेश सावंत भी थे। पर क्या सिद्धार्थ की इतनी हिम्मत थी कि वो सबकुछ अकेले कर
सकता था। सब एकसाथ थे सिवाय सुशांत के। खिचड़ी पकी, पर
किसके कहने पर। इस बात पर गौर करना होगा। पड़ोसी महिला ने 22 अगस्त को अपनी चुप्पी
तोड़ी और खुलकर सामने आई मीडिया से कहा कि 13 जून की रात ग्यारह बजे के आसपास सारी
लाइटें बंद हो गई थी सिवाय रसोई घर के। जबकि नीरज सुशांत का रसोइया कहता है कि 14
जून की सुबह उसने सुशांत को जूस दिया और नारियल पानी भी। उसके बाद उन्होंने अपने
कमरे का दरवाजा लाक कर लिया और फिर पूरी कहानी गढ़ी रची गई सुना दी गई। लोगों ने यकीन
भी कर लिया लेकिन परिवार ने नहीं किया। कहां गया जूस का ग्लास, वो आधा खाली था या
पूरा। शरीर की जांच में रिपोर्ट में कुछ निकला क्यों नहीं। एक एक्टर के वास्तविक
जीवन का स्क्रीप्ट राइटर कौन है। पूरा देश जानना चाहता है कि रोप ट्रिप के दौरान
ऐसा क्या हुआ। क्या साज़िश वहीं रचि गईं या कड़ियां और जुड़ीं। अगर रिया सुशांत को
किनारे लगाने के लिए ही आईं थी तो इस आपरेशन को पूरा होने में जिस सीढ़ी पर चढ़ना या
उतरना पड़ा रिया ने किया क्योंकि उन्हें अपने मकसद में खरा जो उतरना था। 2019 से
रिया का लिव इन में रहने आईं तबसे सबकुछ हथिया लिया क्या बैंक अकाउंट, कार्ड, नौकरों
पर हूकूमत, फैसलों की आजादी सब छीन लिया सुशांत से। डिप्रशन में नहीं थे सुशांत
उन्हें डिप्रेशन में लाने की कवायत चल रही थी इसलिए जबरन शायद दवाईयां खिलाई जाती
थीँ। उन्हें मानसिक तौर पर पागल करार देने के लिए। इससे रिया को क्या फायदा था।
किस कारण रिया महेश भट्ट को इतने प्यारे मैसेज लिख रही थीं। उन्होंनें उनके लिए क्या
कर दिया जिससे वो हमेशा स्पेशल ऐंजल बोलीं।
साजिश की महक नहीं साजिश की दीवारें नजर आ रही हैं आर पार। संदीप सिंह एक ऐसा शक्स जो बेहद अपना सा दिखा उस दिन जिस दिन सब बेगाने हो गए जिस दिन रिया ने मारच्यूरी में सुशांत को अलविदा कहा- सारी बाबू कहकर। क्या रिया किसी के दबाव में आकर सुशांत के साथ गलत कर दीं या उनका मकसद ही था सुशांत के जीवन में आकर तबाही मचाना। जहन में सवाल ही सवाल हैं जवाब किसी के पास नहीं। संदीप सिंह का प्रोफाइल खंगालना अभी सीबीआई को बाकी है। रिया का सबसे अहम करीबी स्टाफ जो मौत के बाद सिचूएशन संभालने आया था। जिसने असली खेल खेला यह संदीप सिंह उसके कहने पर सारे काम कर रहा था घर से लेकर अंतिम संस्कार तक। महेश भट्ट को क्या परेशानी थी सुशांत से। कहीं महेश भट्ट किसी और के कहने पर सुशांत का काम तमाम करने की साजिश तो नहीं रचने लग गए थे। कौन है वो शक्स जो सुशांत को उपर उठते देख नहीं पा रहा था। सुशांत की मौत के बाद कुछ लोग सोच समझकर बोले –दिखावे के लिए अपनेपन का एहसास कराया पर कौन किसका कितना अपना होता है इस मायानगरी मुम्बई में। पोस्टमार्टम करने वाले सारे डाक्टर महाराष्ट्र के ही हैं। उनमें से एक ने शायद सीबीआई के सामने कबूल किया किया कि महाराष्ट्र पोलिस का दबाव अधिक था जिससे पोस्टमार्टम रात में ही करना पड़ा या सिर्फ औपचारिकता के लिए रिपोर्ट लिख दी गई।
बहुत बार ऐसा देखा गया
है कि हम बाहर वालों को निशाने पर लेते हैं पर निशान घर में छुपा होता है बहरुपिया
बनकर। बाघ की खाल ओढ़े कौन है वो गीदड़ जिसने ऐसा घिनौना खेल रचा। महाराष्ट्र
सरकार आज बेबस हाथ बांधे धूप में खड़ी है जहां ना तो ठंड़ी छांव है और ना ही आसार।
केंद्र के निशाने पर लाल निशान में जल रही महाराष्ट्र की उद्धव सरकार बीच मझधार
में बिना पतवार गोते लगा रही है जहां मांझी खुद पानी में अपनी पतवार फेंक चुका है।
अब नाव पार कैसे जाएगी ये कौन बताएगा। सुशांत को इंसाफ दिलाने में मीडिया की
भूमिका सक्रिय है। इसमें चाणक्य की कूटनीति भी नजर आती है। यही मौका है जब सरकार
की खामियां दिखाकर उसे सिंहासन से उतारने का मौका भी केंद्र को मिल गया है।
शिवसेना भी इतनी डरी है कि कहीं आदित्य ठाकरे के कारण सालों की मेहनत मिट्टी में
ना मिल जाए।
सुशांत यदि परिवार के
साथ होता तो शायद ऐसी घटना नहीं घटती। पर महा पुलिस शक के घेरे में ही नहीं संदेह
के दलदल में धंस गई है। शुक्र है सीबीआई की टीम को महा पुलिस ने क्वारंटाइन नहीं
करवाया बिहार पुलिस की तरह। सुशांत के पिता के वाट्सअप पर शिकायत करने के बावजूद महा
पुलिस खामोशी के आगोश में सो रही थी। जैसे मानसरोवर का शांत जल बड़ा सुंदर लगता है
पर जब कोई कंकड़ फेंके तो आवाज आती है शांति भंग हो जाती है। ऐसा ही सुशांत का
परिवार भी है। न्याय की आस सीबीआई से है पूरे देश को। आशा है कि इस बार सीबीआई खरी
उतरेगी।