क्या
होगा बंगाल का??
-सर्वमंगला
मिश्रा-स्नेहा
पं.
बंगाल अपने
गौरवपूर्ण इतिहास के लिए
प्रसिद्ध है। बंगाल देशभक्ति,
कला –संस्कृति
और साहित्य के लिए जाना जाता
है। बंगाल अंग्रेजों के शासनकाल
में देश की राजधानी थी। बंगाल
जिसने ज्योति बसु के नेतृत्व
में खुद को सुरक्षित महसूस
किया और अब 34 वर्षों
के शासनकाल की नींव को झकझोर
देने वाली ममता दीदी के राज
में बंगाल कहीं क्या दिशाहीन
हो गया है ??
जबसे
केन्द्र में भारतीय जनता
पार्टी का आगमन हुआ है क्षेत्रीय
पार्टियों की बौखलाहट अब चिंतन
में नहीं एक्शन में परिवर्तित
हो रही है। जीता जागता उदाहरण
बिहार है। जहां राजद और जेडीयू
ने दस में से छह सीटें जीतकर
अन्य पार्टियों को भी ऐसा करने
की प्रेरणा दे डाली है। पासवान
के सुपुत्र चिराग पासवान ने
जहां लोकसभा चुनावों के पहले
समझदारी दिखायी वहीं इन दो
बुजुर्गों ने उप-चुनाव
से पहले पहल कर डाली। अब आक्सीजन
तो हर पार्टी को चाहिए जीने
के लिए। सुगबुगाहट तो सपा और
बसपा के गठबंधन की भी है। सवाल
सत्ता का जो है। बंगाल की सत्ता
जिसके लिए अपने कालेज की युवा
नेत्री ने ज्योति बसु की गाड़ी
पर भीड़ को चीरते हुए झंडा
गाड़ने का दम दिखाया था। तब
से लेकर 2011 जब
वो सत्ता पर आसीन हुई तब तक।पर
सवाल उठता है कि बंगाल में आज
कौन रहता है ? बंगाल
में आज बड़ाबाजार,
अलीपुर,
गोड़िया जैसे
इलाकों को छोड़ दिया जाय तो
नये कोलकाता यानी राजारहाट,साल्ट
लेक जैसे इलाकों में कौन रहता
है? रिटायर्ज
आफिसर्स, बूढे
बुजुर्ग दम्पत्ति,
जो आराम से
बुढ़ापा काटना चाहते हैं।
कहां हैं नवयुवक जो बंगाल को
उन्नति के पथ पर लेकर अग्रसर
होंगे। कहां है जगदीश चन्द्र
बोस, कहां
है सुभास चन्द्र बोस??
आज बंगाल देश
के किस पायदान पर खड़ा है।
इसका आंकलन शायद आपको चौंका
दे। आज युवा वर्ग शिक्षा और
रोजगार की तलाश में दिल्ली,
बैंगलोर और
मुम्बई जैसे इलाकों में अपना
भविष्य तलाशते हैं। राज्य के
युवा बेहतर शिक्षा संस्थानों
के अभाव में दिल्ली,बैंगलोर,
चेन्नई के
चक्कर काटते हैं तो भविष्य
बंगाल में अंधकारमय नजर आता
है इसलिए बेहतर जीवन शैली और
रोजगार के बेहतर,सुलभ
साधन ढूंढते युवा अपना घर
छोड़कर बाहर निकलते चले जा
रहे हैं। इन्हीं बातों के
मद्देनजर तत्कालीन मुख्यमंत्री
बुद्धदेव भट्टाचार्या ने एक
बार लोगों को आश्वश्त किया
था कि ऐसे शिक्षण संस्थानों
को बढ़ावा दिया जायेगा जिससे
नवयुवकों को राज्य छोड़कर
बाहर न जाना पड़े। पर ऐसा कुछ
हुआ नहीं। इंजीनियर्स बैंगलोर
और चेन्नई का रुख कर लेते हैं
तो दूसरे क्षेत्रों वाले
दिल्ली और मुम्बई जैसे शहरों
में बसने लगे हैं। ऐसे में
बंगाल का कर्णधार कौन होगा?
पिछले कुछ
सालों में केपजेमिनाई,
विप्रो,
टेक महिन्द्रा
जैसी कंपनियों ने अपनी उपस्थति
दर्ज जरुर करायी है जिससे
साल्टलेक स्थित सेक्टर 5
के इलाकों में
दूसरे शहरों से और राज्यों
से आये लोग नौकरी कर रहे हैं
जिससे मकान मालिकों को किरायेदार
मिल गये हैं नोएडा ,
दिल्ली और
मुम्बई की तरह। पर,
जिसतरह टाटा
के पांव उखाड़े गये उस तर्ज
पर क्या बंगाल का औद्दोगिक
विकास हुआ है? हाल
ही में ममता बनर्जी सिंगापुर
की यात्रा करके आयीं हैं। पांच
सालों में सी एम साहिबा ने
कितने उद्दोगों को सही तरीके
से आमंत्रित किया। कितनी
फैक्ट्रीज़ लगने वाली हैं
जिससे बंगाल के लोगों को रोजगार
की प्राप्ति हो सकेगी। गांवों
में रहने वाले लोगों के पास
आज कितनी नौकरियां हैं जिससे
वो अपना और अपने परिवार का भरण
पोषण ठीक से कर पाने में समर्थ
हैं। ग्रामीण इलाकों में आज
भी खेती ही एकमात्र सहारा है
या छोटे मोटे रोजगार। पर वह
पर्याप्त नहीं है जीवन यापन
की दृष्टि से। मंहगाई जिस
आसमान को दिन पर दिन छूती चली
जा रही है और गैजेट्स का शौक
परवान चढ़ता चला जा रहा है।
ऐसी परिस्थति में विदेशी आतंकी
मौके का फायदा उठाकर भोले भाले
मासूम गांववालों का प्रयोग
करते हैं। जिससे अज्ञानतावश,
लालचवश या
मजबूरी से विवश होकर उनके
गुलाम बन जाते हैं। इसी तरह
देश में स्लीपर सेल्स का नेटवर्क
तगड़ा होता जाता है और हम जिस
डाल पर बैठे हैं उसी डाल को
काटते चले जा रहे हैं।
बंगाल
जहां महिलाओं के सम्मान के
लिए भी जाना जाता था। अब दशा
विपरीत नजर आ रही है। दिल्ली,
मुम्बई की हवा
लग गयी है बंगाल को। पंचायतों
के अजब- गज़ब
फरमान। हाल ही में जलपाईगुड़ी
की एक घटना सामने आयी जिसमें
एक पिता अपने रेंट पर लिए गये
ट्रैक्टर का कर्ज न चुका पाने
के कारण गांव में सभा बैठी थी।
जहां किसान अपना कर्ज चुकाने
की मोहल्लत मांग रहे थे। जिसमें
टी एम सी के वार्ड नम्बर 9
के की काउसिलर
और उनके पति भी मौजूद थे। पर
बात बढ़ी और पिट रहे पिता के
लिए बेटी घर से निकलकर बाहर
आयी और आग्रह किया कि-
मत मारो मेरे
पिता को। तभी उसके कुछ जानने
वाले उसे वहां से हटाकर दूर
ले गये। जिसके बाद उसकी नंगी
लाश धूपगुड़ी के रेलवे ट्रैक
पर पायी गयी। इससे भी घिनौना
चेहरा बंगाल का कुछ महीनों
पहले आया जहां गैर जाति के
युवक से प्रेम और विवाह करने
की सज़ा मस्तिष्क को झकझोर
और रुह को कंपा देने वाली थी।
पंचायत ने उसे गैर जाति में
विवाह करने पर दंड के तौर पर
आर्थिक दंड देने को कहा। जब
उसने कहा कि उसके पास इतने
रुपये नहीं है तो दिल दहलाने
वाली सज़ा फरमान के तौर पर उस
पंचायत ने सुनायी। रिश्ते
में लगने वाले चाचा और भाईयों
ने उसके साथ कुकर्म किया। यही
था उस पंचायत का फरमान। क्या
अब महिलायें बंगाल में सुरक्षित
रह गयी हैं ? एक
प्रमुख टेलीविजन चैनल ने
रियेलिटि चेक बंगाल के सेक्टर
5 में
किया। जहां जानी मानी विदेशी
कंपनियां स्थापित हैं। एक
कार को खड़ा कर उसमें से चीखें
निकलती हुई महिला की किसी ने
मदद नहीं की। हांलाकि वह एक
टेस्ट था कि अगर सच में कोई
महिला फंस जाये तो क्या बंगाल
के लोगों में अब भी इतनी इंसानियत
बची है कि आगे आयें और मदद की
गुहार सुनें। सेक्टर पांच और
उसके आस पास का इलाका काफी
सुनसान सा रहता है। कमर्शियल
इलाका है। जहां चहल पहल दिन
में ही अच्छी खासी रहती है रात
में सन्नाटा पसर जाता है। मुझे
याद है आज से तकरीबन साढे 3
साल पहले हमारी
एक सहयोगी रात को तकरीबन साढ़े
आठ बजे निकली घर जाने को। साउथ
की तरफ जाने वाले लोग अधिकतर
शटल का यूज करते हैं। उपलब्धता
की दृष्टि से भी और कम समय में
अधिकतम दूरी भी तय हो जाती है।
पर वह जिस शटल में बैठी उस गाड़ी
के दरवाजे ड्राइवर ने तकनीकी
तौर पर बंद कर दिये। जिसके बाद
उसने आफिस फोन किया तो धर पकड़
के बाद उसकी निकटस्थ थाने में
कंप्लेन दर्ज करायी गयी। पर
क्या सभी का भाग्य हरबार साथ
देता है। यह हाल है नए बसते
हुए कोलकाता शहर का। तो बाकी
इलाकों में दहशत क्या अपने
पैर नहीं पसारेगी। गांवों का
हाल उपर बंया कर ही चुकी हूं।
सूत्रों
के हवाले से खबर छन छन कर आ रही
है कि अब बंगाल के रिंग में
रिंगमास्टर बनने के बाद उन्हें
पुराने रिंगमास्टरों से हाथ
मिलाकर चलने में परहेज नहीं।
इस बात का तात्पर्य क्या है-
कि इतने सालों
तक सी पी एम के खिलाफ जो लड़ाई
जनता के मन मस्तिष्क में उकेरी
गयी वो मात्र आपकी कुर्सी की
लड़ाई पाने का जरिया था। पार्टी
की लड़ाई की तह में स्व आक्रोश
छिपा था। हर बार रक्त-रंजित
चुनावों के बाद ही बंगाल ने
कुर्सी पर किसी को पदासीन किया
है। 1997 का
वो साल जब ममता के नाम की आंधी
पूरे बंगाल में चक्रवात की
तरह पनपी थी। पर सत्ताधारी
सी पी एम ने ममता दीदी को पटखनी
दी थी। हारा हुआ योद्धा और
बूढा शेर जब गिरकर उठते हैं
तो उसमें एक नयी आक्रामक शक्ति
आ जाती है। वही ममता दीदी ने
भी किया। धुंआधार ठीक मोदी
की तरह अनगिनत जनसभायें उसमें
जोरदार भाषण और देशभक्ति भरे
गीतों से समापन करती थीं। पर
कहां गयी अब वो देशभक्ति।
कितने आई ए एस, आई
पी एस निकले हैं ?
कितने शोधकर्ता,
वैज्ञानिक,
डाक्टर और आई
आई टी प्रोफेशनलस निकले हैं?
आज
बंगाल में प्रापर्टी के दाम
बढ़ रहे हैं।पर उसका आधार क्या
है? वहां
शिक्षा सामान्य,
बिजनेस,
नौकरी सामान्य
जो पीढियों से करते और रहते
चले आ रहे हैं। दाम कितने दिन
बढेगें। सिर्फ दबंगई के बल
पर शासन कितने दिन का। नये
बसेरे बस तो रहे हैं पर पक्षी
उड़ते चले जा रहे हैं। तो नये
घरौंदे में रहता है कौन है और
कौन रहेगा दीदी-
ज़रा सोचिये।
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